Book Details
"सहज अवतार महाराज दर्शन दास जी" ने भी एक ही "परमात्मा" का सन्देश जीवों को दिया है कि मैं तो केवल एक ही "परमात्मा" को जानता हूँ। जिसने यह कुल-कायनात बनाई है। सारी सृष्टि की रचना की है चौरासी लाख योनियां बनाई है, ऋषि-मुनि, संत-महात्मा, महापुरूषों का जन्म दाता भी वह स्वयं ही है। उसने "मनुष्य" को, "मानवता" को बनाया है कभी कोई हिन्दु, सिक्ख, मुसलमान या ईसाई नहीं बनाया। यह सब जात-पात, मजहब-कौम, मनुष्य की अपनी उपज है। मैं इन्हें नहीं जानता। यह सब पराई सोचें हैं मैं तो केवल "मानवता" को जानता हूँ। मेरे लिए सब उस परमात्मा की सन्तानें हैं। इसी कारण मेरा सन्देश भी पूरी मानव जाति के लिए है। किसी एक मजहब-कौम या जाति के लिए नहीं। जो सन्देश मुझे उस "परम-पिता", परमात्मा ने देकर इस धरती पर भेजा है, वह है आपसी प्रेम, आपसी सांझ, एकता, भाईचारा।
महाराज दर्शन दास जी अपने सत्संगों में मुख्यत: यही सन्देश जीवों को दिया करते थे कि आपसी मतभेदों से ऊपर उठकर "मानवता के दायरे में आयें। सबसे पहले हम एक इन्सान हैं और हम सबका "धर्म" एक ही है वह है "सत, संतोख, दया, नाम"। मजहब हमारा कोई भी हो सकता है। हम सब जीव अपने इस धर्म को भूल गए हैं और अपने हकों की खातिर धरने दे रहे हैं आपस में लड़ाई-झगड़े कर रहे हैं जो कि उचित नहीं है। जो मानवता के, हमारे विनाश का कारण बन सकता है। हम सब जीव उस "परमात्मा" के दास बन कर मानवता की सेवा में जुट जाएं क्योंकि हम उस "एक" परमात्मा की सन्तान हैं और आपस में भाई-भाई हैं।
Author Description
सहज अवतार महाराज दर्शन दास जी का जन्म 7 दिसम्बर 1953 को पंजाब के शहर बटाला में हुआ। आप निर्गुण व सर्गुन दोनों ताकतों के मालिक थे। 15 अगस्त 1971 में आपने परमेश्वर के आदेशानुसार ईश्वरीय संदेश व ईश्वरीय रहमतों को दुनिया में बांटना शुरू किया तथा कहा "हम करने आये लोक भलाई, दुख हर सतगुरू नाम धियाई ।।" पंजाब के बाद भारत के कई अन्य प्रांतों व विदेशों में अपना रूहानी संदेश जीवों को दिया । 1979 में लन्दन पहली बार अपनी विदेश यात्रा पर गए । आपके धार्मिक व जनकल्याण के कार्यों को देखते हुए एबी फील्ड सोसायटी के चेयरमैन नियुक्त किये गए, तथा सोसायटी के 1000वीं शाखा के उद्घाटन समारोह में 16-10-87 को प्रिंस चार्ल्स द्वारा आमंत्रित किये जाने वाले पहले एशियाई व्यक्ति बने । 16 फरवरी 1980 को भारत में दास धर्म की स्थापना की। आपका मुख्य संदेश सच बोलना, संतोख रखना, सरबत का भला, साध संगत करना, व पांच विकारों की शहादत था। आपकी इलाही वाणी की प्रमुख रचना यशवंती निराधार है । अन्य पुस्तकें रूह, मार्गदर्शन, तेरीयां यादां व गुरू ज्ञान हैं। 11 नवम्बर 1987 में यू.के. के साउथ हाँल में सत्संग के पश्चात् संगत से वचन विलास करते हुए अलगाववादियों की गोलियों का शिकार हो शहादत का जाम पी गए।
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